संत कबीर के दोहे:दारु आदमी को पशु बना देती है


औगुन कहूं सराब का, ज्ञानवंत सुनि लेय
मानुष सों पसुवा करै, द्रव्य गांठि का देय

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि शराब में ढेर सारे अवगुण हैं। ज्ञानी लोगों को यह बात समझ लेना चाहिये। शराब तो मनुष्य को एक तरह से पशु बना देती है और इसके लिये वह अपनी गांठ से पैसा भी नष्ट करता है।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-सैंकड़ों वर्ष पहले कबीरदास जी ने शराब के अवगुणों का वर्णन किया था। कहने को आज समाज सभ्य होता जा रहा है पर उसके रीति रिवाजों में जिस तरह तमाम तरह के व्यसन भाग बन रहे हैं उस पर किसी को चिंता नहीं है। मजे की बात यह है कि लोग धर्म के नाम पर तमाम तरह की रिवाज अपनाये हुए हैं पर उसमें शराब आदि का उपयोग धड़ल्ले से किया जाता है। कई जगह तो मूर्तियों पर ही शराब चढ़ाने की प्रथा भी शुरू की गयी है। कहने को भारतीय संस्कृति और संस्कारों का दावा तो तमाम तरह के प्रचार माध्यमों में किया जाता है पर वर्तमान में समाज किस तरह अंधा होकर दुव्र्यसनों को अपने रीति रिवाजों का हिस्सा बना बैठा है उस पर कोई ध्यान नहीं देता। सगाई, शादी, पिकनिक या कही बैठक होने पर शराब की बोतल खोलकर लोग अपनी खुशियों का इजहार करते हैं। क्रिकेट टीम जीतने पर बीयर खोलने के दृश्य कई जगह दिखाई देते हैं। हालांकि कहने वाले कहते हैं कि बीयर शराब नहीं होती पर यह अपने आप में एक व्यर्थ का तर्क है। नशा सभी में हैं और आदमी उसे जब पीता है तो वह पशु भाव को प्राप्त हो जाता हैं लज्जा और सम्मान से परे होकर वह बात करता है। शराब पीने से कई घरों की आर्थिक और सामाजिक स्थिति खराब हूई है इस तथ्य को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।

तमाम तरह के ऐसे लोग हैं जो अपनी जाति, भाषा और धर्म के समूहों के नेतृत्व का दावा करते हैं पर वह ऐसी बुराईयों की तरफ ध्यान नहीं देते जिससे उनके लोगों की मानसिकता विकृत हो रही है। आजकल तो समाज में शराब का सेवन इस मात्रा में बढ़ गया है लोग एक दूसरे से खुलेआम काकटेल पार्टी मांगते हैं। पहले लोग पीते थे तो छिपाते थे पर आजकल तो दिखाकर पीते हैं कि देखो हम आधुनिक हो गये हैं। शराब पीने की बढ़ती प्रवृत्ति ने समाज को अंदर से बहुत खोखला कर दिया है। समाज विज्ञानी इस बात को कहते हैं पर जिनके हाथ में समाजों का नियंत्रण है वह केवल अपने नारे लगाने और झूठा स्वाभिमान दिखाकर अपने लोगों की बुराईयों को छिपाते हैं।
सच बात तो यह है कि शराब पीना निजी मामला नहीं है। जो शराब पीते हैं उन पर विश्वास तो कतई नहीं करना चाहिये। इस पाठ के संपादक का मत तो यह है कि अगर हम स्वयं भी शराब पीयें तो हमें अपने पर ही विश्वास नहीं करना चाहिये। जब किसी से किसी काम का वादा करें तो मान लेना चाहिये कि झूठा वादा कर रहे हैं। न भी माने तो दूसरे लोग ऐसा ही समझते हैं। शराब पीने से जो मानसिक और बौद्धिक क्षति होती है उसकी अनुभूति तभी हो सकती है जब पीने वाले उसे छोड़ कर देखें।

कहने वाले कहते हैं शराब पीने से गम कहते हैं पर स्वास्थ्य विज्ञानी कहते हैं कि इसके सेवन से मनुष्य की इच्छा शक्ति में कमी आती है और वह जीवन संघर्ष से बहुत जल्दी घबड़ा जाता है।
————————–

यह पाठ मूल रूप से इस ब्लाग‘शब्दलेख सारथी’ पर लिखा गया है। अन्य ब्लाग
1.दीपक भारतदीप की शब्दलेख पत्रिका
2.दीपक भारतदीप की अंतर्जाल पत्रिका
3.दीपक भारतदीप का चिंतन
संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

Post a comment or leave a trackback: Trackback URL.

टिप्पणियाँ

  • chandrapal  On मई 6, 2010 at 12:04 अपराह्न

    very nice.hum pashu banane ko apni shan samajhate hain.

टिप्पणी करे