संत कबीर के दोहे-भक्त नारी से रानी भी बराबरी नहीं कर सकती (kabir ke dohe-bhakt nari se rani)


दुखिया भूखा दुख कीं, सुखिया सुख कौं झूरि
सदा अजंदी राम के, जिनि सुख-दुख गेल्हे दूरि

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि भूख के कष्ट के कारण दुखी आदमी मर रहा है तो ढेर सारे सुख के कारण सुखी भी कष्ट उठा रहा है किंतु राम के भक्त तो हर हाल में मजे से रहते हैं क्योंकि वह दुःख सुख के भाव से परे हो गये हैं।

हैवर गैवर सघन धन, छन्नपती की नारि
तास पटेतर ना तुलै, हरिजन की पनिहारि

संत शिरोमणि कबीरदास जी कहते हैं कि भगवान की भक्ति करने वाली गरीब नारी की बराबरी महलों में रहने वाली रानी भी नहीं कर सकती भले ही उसके राजा पति के पास हाथियों और घोड़ो का झुंड और बहुत सारी धन संपदा है।
वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-दुनियां में तीन तरह के लोग होते हैं-दुःखी,सुखी और भक्त। अभाव और निराशा के कारण दुःखी आदमी हमेशा परेशान रहता है तो सुखी आदमी अपने सुख से उकता जाता है और वह हर ‘मन मांगे मोर’ की धारा में बहता रहता है। विश्व के संपन्न राष्ट्रों के देश भारत के अध्यात्मिक ज्ञान की तरफ आकर्षित होते हैं तो भारत के लोग उनकी भौतिक संपन्नता प्रभावित होते हैं। पश्चिम में तनाव है तो पूर्व वाले भी सुखी नहीं। कहने का तात्पर्य यह है कि लोेग इस मायावी संसार में केवल दैहिक सुख सुविधाओं के पीछे भागते हैं। जिसके भौतिक साधन नहीं है वह कर्ज वगैरह लेता है और फिर उसे चुकाते हुए तकलीफ उठाता है और अगर वह चीजें नहीं खरीदे तो परिवार के लोग उसका जीना हराम किये देता है। सुख सुविधा का सामान खरीद लिया तो फिर दैहिक श्रम से स्त्री पुरुष विरक्त हो जाते हैं और इस कारण स्वास्थ बिगड़ने लगता है।

जिन लोगों ने अध्यात्म ज्ञान प्राप्त कर लिया है वह जीवन को दृष्टा की तरह जीते हैं और भौतिकता के प्रति उनका आकर्षण केवल उतना ही रहता है जिससे देह का पालन पोषण सामान्य ढंग से हो सके। वह भौतिकता की चकाचैंध मेंे आकर अपना हृदय मलिन नहीं करते और किसी चीज के अभाव में उसकी चिंता नहीं करते। ऐसे ही लोग वास्तविक राजा है। जीवन का सबसे बड़ा सुख मन की शांति हैं और किसी चीज का अभाव खलता है तो इसका आशय यह है कि हमारे मन में लालच का भाव है और कहीं अपने आलीशान महल में भी बैचेनी होती है तो यह समझ लेना चाहिये कि हमारे अंदर ही खालीपन है। दुःख और सुख से परे आदमी तभी हो सकता है जब वह निष्काम भक्ति करे।
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संकलक एवं संपादक-दीपक भारतदीप

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