बैचेन रहने की आदत-हिन्दी कविता


लोगों की हमेशा  बेचैन रहने की 
आदत   ऐसी हो गयी है कि
जरा से सुकून मिलने पर भी
डर जाते हैं,
कहीं कम न हो जाये
दूसरों के मुकाबले
सामान जुटाने की हवस

अभ्यास बना रहे लालच का
इसलिये एक चीज़ मिलने पर
दूसरी के लिये दौड़ जाते हैं।
———
पुराने कायदों से आज़ाद होकर
दौड़ने के लिये मन तो बहुत करता है,
मगर बिना अक्ल के चले भी
तो गिरने के अंदेशे बहुत हैं,
ज़मीन पर चलने वालों के लिये खतरा कम है
हवा में उड़कर गिरने का भी डर रहता है।
————-

लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
http://dpkraj.blogspot.com

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टिप्पणियाँ

  • mehek  On नवम्बर 4, 2010 at 5:51 अपराह्न

    bilkul sahi ek aakansha puri hone par manushay dusri chaht rakhta hai aur usko khone ka darr bhi.
    aapko sahparivar dipawali ki shubkamnaye.

  • dsm  On दिसम्बर 23, 2011 at 8:06 अपराह्न

    लोगों की हमेशा बेचैन रहने की
    आदत ऐसी हो गयी है कि
    जरा से सुकून मिलने पर भी
    डर जाते हैं,
    कहीं कम न हो जाये
    दूसरों के मुकाबले
    सामान जुटाने की हवस
    अभ्यास बना रहे लालच का
    इसलिये एक चीज़ मिलने पर
    दूसरी के लिये दौड़ जाते हैं।
    ———
    पुराने कायदों से आज़ाद होकर
    दौड़ने के लिये मन तो बहुत करता है,
    मगर बिना अक्ल के चले भी
    तो गिरने के अंदेशे बहुत हैं,
    ज़मीन पर चलने वालों के लिये खतरा कम है
    हवा में उड़कर गिरने का भी डर रहता है।

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