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जिंदगी का दम-हिंदी कविता


बरसों तक दर्द पीते रहे हम,
कभी कम नहीं हुए गम,
इलाज के मिले हजार नुस्खे
मगर दवाओं का था असर कम,
कहें दीपक बापू
जब तक आसरा टिकाया दूसरों पर
हवा का थोड़ा झौंका भी
हिला देता था जिंदगी
अब तो उम्मीद लादी है
अपने ही कंधों पर
बोझ तले नहीं लड़खड़ाते इसलिये कदम
——————————-
लेखक एवं कवि-दीपक राज कुकरेजा “भारतदीप”,ग्वालियर

लेखक और संपादक-दीपक “भारतदीप”,ग्वालियर 
poet, writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwaliorwriter aur editor-Deepak ‘Bharatdeep’ Gwalior

भ्रष्टाचार का नजराना-हिन्दी हास्य कविता (bhrashtachar ka nazarana-hindi hasya kavita or comic poem on corrupition)


समाज सेवक को धनपति ने
अपनी शराब पार्टी में बुलाकर
अकेले में कहा
‘‘यार, अपनी कमाई बहुत हो रही है,
पर मजा नहीं आ रहा है,
लोगों के कल्याण के नाम पर
तुम्हें चंदा देते हैं
गरीबों की भीड़ कम नहीं हुई
कभी लोग भड़क न उठें
यह डर सता रहा है,
इसलिये तुम भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन चलाओ,
यहां जिंदा कौम रहती है यह
संदेश विदेशों में फैलाओ,
बस इतना ख्यान रखना
भ्रष्टाचार के खिलाफनारे लगाना,
किसी पर आरोप लगाकर
उसकी पहचान मत बताना,
तुम तो जानते हो
हमारा काम बिना रिश्वत
दिये बिना चलता नहीं,
टेबल के नीचे से न दो पैसे
तो किसी का पेन काम के लिये मचलता नहीं,
फिर कई बड़े लोग
तुम्हें जानते हैं,
उनका भी ख्याल रखना
तुमको वह अपना सबसे बड़ा दलाल मानते हैं
इसलिये
हवा में भाषणबाजी कर
अपना अभियान चलाना,
हमें भी है विदेश में
अपने देश की जिंदा पहचान बताना,
अब तुम रकम बताओ,
अपना चेक ले जाओ।

समाज सेवक ने चेक की रकम देखी
फिर वापस करते हुए कहा
‘यह क्या रकम भरते हो,
लड़ा रहे हो उस भ्रष्टाचार नाम के शेर से
जिसका पालन तुम ही करते हो,
पहले से कम से कम पांच गुना
रकम वाला चेक लिखो,
कम से कम हमारे सामने तो
ईमानदार दिखो,
भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ते हुए
जब मैदान में आयेंगे,
भले किसी का नाम लें
पर हमारे कई प्रायोजक
डरकर साथ छोड़ जायेंगे,
बाल कल्याण और स्त्री उद्धार वाले हमारे धंधे
सब बंद हो जायेंगे,
भ्रष्टाचार विरोधी होकर
हमारी कमाई के दायरे तंग हो जायेंगे,
बंद हो जायेगा
शराब और जुआ खानों पर जाना,
बंद हो जायेगा वहां का नजराना,
जब चारों तरफ मचेगा कोहराम,
तुम्हारा बढ़ जायेगा दो नंबर का काम,
इसलिये हमारा चंदा बढ़ाओ,
वरना भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन में
हम कतई न उलझाओ।’’
————

लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,ग्वालियर
athour and writter-Deepak Bharatdeep, Gwalior

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बदल गए दुनिया के दस्तूर-हिन्दी व्यंग्य कविताएँ


फरिश्ते मशगूल हो गये है
जी-हुजूरी कराने में
इसलिये लोग जान बचाने के लिये
शैतानों को सलाम बजाते है।
कौन बजाये बड़ी दरबार का दरवाजा
बाहर खड़े दलालों से ही
कमीशन पर काम हो जाते हैं।
दुनियां के दस्तूर बदल गये हैं
फरिश्तों का वजूद बचाने के लिये भी
शैतान उनके महल पर पहरेदार बन जाते हैं।
————
कौन बिना कसूर के जिंदा है यहां
किसकी शिकायत करे कौन,
अच्छे बुरे की पहचान पर
वैसे भी सभी हो गयी अक्ल मौन,
फरिश्तों की दलाली में
लग गये हैं शैतान
उनसे लड़ेगा कौन।
कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक ‘भारतदीप”,ग्वालियर 
poet,writer and editor-Deepak ‘BharatDeep’,Gwalior

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विज्ञापन में समाचार-हास्य कविता (vigyapan mein samachar-hasya kavita)


समाजसेवक जी ने
प्रचारक से कहा,
‘‘यार, रोज तुम घोटालों का
पर्दाफाश करते हो
क्या हमें मरवाओगे,
अभी तक हमारे चेले फंस रहे हैं
धीरे धीरे हमारे हाथ में हथकड़ी
पड़ जाने की नौबत तुम लाओगे,
मगर याद रखना
हमारे घोटालों में तुम भी भागीदार हो
इसलिये बच नहीं पाओगे।’’

सुनकर प्रचारक महोदय बोले
‘‘यार,
तुम भी निरे मूर्ख हो
घोटालों से हमारे समाचार सनसनीखेज बनते हैं,
विज्ञापनों में अपने जलवे इसलिये छनते हैं,
फिर तुम्हारे चेलों के भी चाटुकार इसमें फंस रहे हैं,
आम लोग बिना सोचे समझे हंस रहे हैं,
फिर हम एक घोटाले पर चलाते हैं
कुछ दिन चर्चा,
कार्यक्रम बनाने में भी नहीं आता खर्चा,
जैसे एक मामला थम जाता है,
फिर कोई नया मामला सामने आता है,
लोग पिछला भूल जाते हैं,
नये को तूल देने में फिर मजे आते हैं,
चिंता मत करो,
बस, भ्रष्टाचार पर
जनता के सामने आहें भरो,
तुम्हारा काम चलता रहेगा जीवन भर,
नहीं है तुम्हें फंसने का डर,
अपनी समाज सेवा की यात्रा
तुम स्वच्छ छवि के साथ तय कर जाओगे।’’
————-

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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भरोसा टूटने के लिये बना है-हिन्दी कविताऐं (bharosa tootne ke liye bana hai-hindi kavitaen)


बेशकीमती है ईमान
पर कौड़ियों के भाव
तो कभी जिस्मानी जरूरतों के लिये
बाज़ार में कुछ इंसान बेच जाते हैं,
हवस वह चीज है
जिसमें जब फंसते है लोगं,
इबादत के लिये
बदलते हैं जगह
खुद भी बदल जाते हैं।
————
भरोसा शायद टूटने के लिये बना है,
जिसे देखों गद्दारी से सना है,
हैरानी है गैरों ने वक्त पर निभाया,
अपनों ने दी दगा या मुंह फेर लिया
जैसे वफा करना उनके लिये मना है।
——–

कवि,लेखक संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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बैचेन रहने की आदत-हिन्दी कविता


लोगों की हमेशा  बेचैन रहने की 
आदत   ऐसी हो गयी है कि
जरा से सुकून मिलने पर भी
डर जाते हैं,
कहीं कम न हो जाये
दूसरों के मुकाबले
सामान जुटाने की हवस

अभ्यास बना रहे लालच का
इसलिये एक चीज़ मिलने पर
दूसरी के लिये दौड़ जाते हैं।
———
पुराने कायदों से आज़ाद होकर
दौड़ने के लिये मन तो बहुत करता है,
मगर बिना अक्ल के चले भी
तो गिरने के अंदेशे बहुत हैं,
ज़मीन पर चलने वालों के लिये खतरा कम है
हवा में उड़कर गिरने का भी डर रहता है।
————-

लेखक संपादक-दीपक ‘भारतदीप’,Gwalior
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कातिल बन जायेंगे महानायक-हिन्दी हास्य कविता (qatil air mahanyak-hindi hasya kavita)


कातिल मिला कातिल से करके लंबे हाथ,
बहुत दिनों बाद हुआ यूं उनका साथ,
एक बोला दूसरे से
‘’यार, अब अपने धंधे में मज़ा नहीं आ रहा है
पैसा बहुत है पर नाम अमीरों की तरह नही चमक पा रहा है,
अपने से अधिक तो यह टीवी चैनल वाले तेज हैं,
देश के नये अंग्रेज हैं,
हम कत्ल कर आते हैं
यह उस पर सनसनी पकाते हैं,
फिल्मों में खलनायकों को भी नायकों जैसा देखते हैं
पर समाज में हम कातिल अपनी छबि नायक जैसी नहीं बना पाते हैं।’’

दूसरा बोला
‘’चिंता मत करो
अपने लोग सभी जगह आ गये हैं,
सभी रंग में सभी जगह छा गये हैं,
हमारे प्रायोजक सौदागर
कई जगह अपना रुतवा दिखाते हैं
कैसे कातिलों को नायक बनायें
प्रचारकों को यह सिखाते हैं
कुछ अक्लमंद उन्होंने रख लिये हैं अपने पास
उनकी बहसों से पूरी होगी अपनी नायक बनने की आस,
हम तो बस कत्ल करेंगे,
वह उसमें धर्म, जाति, भाषा और विचार के रंग भरेंगे,
एक कत्ल पर कहीं विरोध हो जायेगा,
तो कातिल के मरने पर
उसका नायक जैसा शोध हो जायेगा,
गुलाम होगा सारा ज़माना हम कातिलों का
आज़ादी के लिये कहीं धर्म, जाति, भाषा क्षेत्र का
नारा गूंजेगा तो
कहीं माओ का नाम लिया जायेगा,
भरोसा रखो
अक्लमंदों की बहस में दम हुआ तो
हम क़ातिलों को इतिहास करेगा
महानायकों की तरह दर्ज
अभी भी तो अपना पूरा पैसा वैसे ही पाते हैं।
————-

कवि, लेखक और संपादक-दीपक भारतदीप, ग्वालियर
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सौदागरों की मजबूरी-हिन्दी व्यंग्य कविताऐं


खज़ाने की सलामती का जिम्मा हैं जिन पर
वही उसे लुटा रहे हैं,
लुटेरों की महफिल में भी
अपने लोगों को जुटा रहे हैं।
दलालों के ठगने से दर्द नहीं होता
यहां तो पहरेदार ही
कातिलों के लिये मजबूरों को उठा रहे हैं।
————
जिंदा लोगों की जिंदगी के
जज़्बातों से खेलना व्यापार के लिये जरूरी है,
इसलिये मरने वालों पर आंसु बहाना
सौदागरों की मजबूरी है।
ज़माने का यही रिवाज है
जिंदा प्यासे इंसान को पानी कोई पिलाता नहीं
जन्नत में बैठे पुरखों के लिये
लुटाते लोग समंदर
कोई नहीं जानता जिसके बारे में
धरती से उसकी कितनी दूरी है।
———–

कवि लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,ग्वालियर
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चाणक्य नीति-धैर्य हो तो पीड़ा कम हो जाती है (dhiraj-chankya neeti


अधमा धनमिच्छन्ति मानं च मध्यमाः।
उत्तमा मानमिच्छन्ति मानो हि महतां धनम्।।
हिंदी में भावार्थ-
अधम प्रकृत्ति का मनुष्य केवल धन की कामना करता है जबकि मध्यम प्रकृत्ति के धन के साथ मान की तथा उत्तम पुरुष केवल मान की कामना करते हैं।


दरिद्रता श्रीरतया विराजते कुवस्त्रता शुभ्रतया विराजते।
कदन्नता चोष्णतया विराजते कुरूपता शीतया विराजते।।
हिंदी में भावार्थ-
अगर मनुष्य में धीरज हो तो गरीबी की पीड़ा नहीं होती। घटिया वस्त्र धोया जाये तो वह भी पहनने योग्य हो जाता है। बुरा अन्न भी गरम होने पर स्वादिष्ट लगता है। शील स्वभाव हो तो कुरूप व्यक्ति भी सुंदर लगता है।

वर्तमान संदर्भ में संपादकीय व्याख्या-इस विश्व में धन की बहुत महिमा दिखती है पर उसकी भी एक सीमा है। जिन लोगों के अपने चरित्र और व्यवहार में कमी है और उनको इसका आभास स्वयं ही होता है वही धन के पीछे भागते हैं क्योंकि उनको पता होता है कि वह स्वयं किसी के सहायक नहीं है इसलिये विपत्ति होने पर उनका भी कोई भी अन्य व्यक्ति धन के बिना सहायक नहीं होगा। कुछ लोग ऐसे होते हैं जो अपने ऊपर यकीन तो करते हैं पर फिर भी धन को शक्ति का एक बहुत बड़ा साधन मानते हैं। उत्तम और शक्तिशाली प्रकृत्ति के लोग जिन्हें अपने चरित्र और व्यवहार में विश्वास होता है वह कभी धन की परवाह नहीं करते।
धन होना न होना परिस्थितियों पर निर्भर होता है। यह लक्ष्मी तो चंचला है। जिनको तत्व ज्ञान है वह इसकी माया को जानते हैं। आज दूसरी जगह है तो कल हमारे पास भी आयेगी-यह सोचकर जो व्यक्ति धीरज धारण करते हैं उनके लिये धनाभाव कभी संकट का विषय नहीं रहता। जिस तरह पुराना और घटिया वस्त्र धोने के बाद भी स्वच्छ लगता है वैसे ही जिनका आचरण और व्यवहार शुद्ध है वह निर्धन होने पर भी सम्मान पाते हैं। पेट में भूख होने पर गरम खाना हमेशा ही स्वादिष्ट लगता है भले ही वह मनपसंद न हो। इसलिये मन और विचार की शीतलता होना आवश्यक है तभी समाज में सम्मान प्राप्त हो सकता है क्योंकि भले ही समाज अंधा होकर भौतिक उपलब्धियों की तरफ भाग रहा है पर अंततः उसे अपने लिये बुद्धिमानों, विद्वानों और चारित्रिक रूप से दृढ़ व्यक्तियों की सहायता आवश्यक लगती है। यह विचार करते हुए जो लोग धनाभाव होने के बावजूद अपने चरित्र, विचार और व्यवहार में कलुषिता नहीं आने देते वही उत्तम पुरुष हैं। ऐसे ही सज्जन पुरुष समाज में सभी लोगों द्वारा सम्मानित होते हैं।  इसलिए सज्जनता और धीरज  का कभी त्याग नहीं करना चाहिए। 

संकलक,लेखक एवं संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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जांच किये बिना किसी को मित्र न बनायें-हिन्दी लेख (mitrata divas or friendship day par vishesh hindi likh)


देश में पश्चिमी सभ्यता से ओतप्रोत कथित सभ्रांत समाज आज मित्रता दिवस मना रहा है। आजकल पश्चिमी फैशन के आधार पर मातृ दिवस, पितृ दिवस, इष्ट दिवस, तथा प्रेम दिवस भी मनाये जाने लगे हैं। अब यह कहना कठिन है कि यह पश्चिमी फैशन का प्रतीक है या ईसाई सभ्यता का! संभवत हमारे प्रचार माध्यम अपनी व्यवसायिक मजबूरियों के चलते इसे किसी धर्म से जोड़ने से बचते हुए इसे फैशन और कथित नयी सभ्यता का प्रतीक बताते हैं ताकि उनको विज्ञापन प्रदान करने वाले बाज़ार के उत्पाद खरीदने के लिये ग्राहक जुटाये जा सकें।
भारतीय समाज बहुत भावना प्रधान है इसलिये यहां विचारधारा भी फैशन बनाकर बेची जाती है। रिश्तों के लेकर पूर्वी समाज बहुत भावुक होता है इसलिये यहां के बाज़ार ने सामाजिक और पारिवारिक रिश्तों के नाम पर लोगों की जेब ढीली करने के लिये-चीन, जापान, मलेशिया, पाकिस्तान तथा भारत भी इसमें शामिल हैं-ऐसे रिश्तों का हर साल भुनाने के लिये अनेक तरह के प्रायोजित प्रयास हर जारी कर लिये हैं। समाचार पत्र पत्रिकायें, टीवी चैनल तथा रेडियो-जो कि अंततः बाज़ार के भौंपू की तरह काम करते हैं-इसके लिये बाकायदा उनकी सहायता करते हैं क्योंकि अंततः विज्ञापन का आधार तो उत्पादों के बिकना ही है।
पश्चिमी समाज हमेशा दिग्भ्रमित रहा है-इसका प्रमाण यह है कि वहां भारतीय अध्यात्म के प्रति आकर्षण बढ़ रहा है-इसलिये वहां उन रिश्तों को पवित्र बनाने के प्रयास हमेशा किय जाते रहे हैं क्योंकि वहां इन रिश्तों की पवित्रता और अनिवार्यता समझाने के लिये कोई अध्यात्मिक प्रयास नहीं हुए हैं जिनको पूर्वी समाज अपने धर्म के आधार पर सामाजिक और पारिवारिक जीवन के प्रतिदिन का भाग मानता है। इसे हम यूं कह सकते हैं कि भले ही आधुनिक विज्ञान की वजह से पश्चिमी समाज सभ्य कहा जाता है पर मानवीय संवेदनाओं की जहां तक बात है पूर्वी समाज पहले से ही जीवंत और सभ्य है और पश्चिमी समाज अब उससे सीख रहा है जबकि हम उनके सतही उत्सवों को अपने जीवन का भाग बनाना चाहते हैं।
मित्र की जीवन में कितनी महिमा है इसका गुणगान आज किया जा रहा है पर हमारे अध्यात्मिक संत इस बात को तो पहले ही कह गये हैं। संत कबीर कहते हैं कि
‘‘कपटी मित्र न कीजिए, पेट पैठि बुधि लेत।
आगे राह दिखाय के, पीछे धक्का देति’’
कपटी आदमी से मित्रता कभी न कीजिये क्योंकि वह पहले पेट में घुस कर सभी भेद जान लेता है और फिर आगे की राह दिखाकर पीछे से धक्का देता है। सच बात तो यह है कि मित्र ही मनुष्य को उबारता है और डुबोता है इसलिये अपने मित्रों का संग्रह करते समय उनके व्यवहार के आधार पर पहले अपनी राय अवश्य अवश्य करना चाहिये। ऐसे अनेक लोग हैं जो प्रतिदिन मिलते हैं पर वह मित्र नहीं कहे जा सकते। आजकल के युवाओं को तो मित्र की पहचान ही नहीं है। साथ साथ इधर उधर घूमना, पिकनिक मनाना, शराब पीना या शैक्षणिक विषयों का अध्ययन करना मित्र का प्रमाण नहीं है। ऐसे अनेक युवक शिकायत करते हुए मिल जाते हैं कि ‘अमुक के साथ हम रोज पढ़ते थे पर वह हमसे नोट्स लेता पर अपने नोट्स देता नहीं था’।
ऐसे अनेक युवक युवतियां जब अपने मित्र से हताश होते हैं तो उनका हृदय टूट जाता है। इतना ही नहीं उनको सारी दुनियां ही दुश्मन नज़र आती है जबकि इस रंगरंगीली बड़ी दुनियां में ऐसा भी देखा जाता है कि संकट पड़ने पर अज़नबी भी सहायता कर जाते हैं चाहे भले ही अपने मुंह फेर जाते हों। इसलिये किसी एक से धोखा खाने पर सारी दुनियां को ही गलत कभी नहीं समझना चाहिए। इससे बचने का यही उपाय यही है कि सोच समझकर ही मित्र बनायें। अगर किसी व्यक्ति की आदत ही दूसरे को धोखा देने की हो तो फिर उससे मित्र धर्म के निर्वहन की आशा करना ही व्यर्थ है। इस विषय में संत कबीरदास जी का कहना है कि
‘कबीर तहां न जाईय, जहां न चोखा चीत।
परपूटा औगुन घना, मुहड़े ऊपर मीत।
ऐसे व्यक्ति या समूह के पास ही न जायें जिनमें निर्मल चित्त का अभाव हो। ऐसे व्यक्ति सामने मित्र बनते हैं पर पीठ पीछे अवगुणों का बखान कर बदनाम करते हैं। जिनसे हम मित्रता करते हैं उनसे सामान्य वार्तालाप में हम ऐसी अनेक बातें कह जाते हैं जो घर परिवार के लिये महत्वपूर्ण होती हैं और जिनके बाहर आने से संकट खड़ा होता है। कथित मित्र इसका लाभ उठाते हैं। अगर अपराधिक इतिहास पर दृष्टिपात करें तो पायेंगे कि अपराध और धोखे का शिकार आदमी मित्रों की वजह से ही होता है।
अतः प्रतिदिन कार्यालय, व्यवसायिक स्थान तथा शैक्षणिक स्थानों पर मिलने वाले लोग मित्र नहीं होते इसलिये उनसे सामान्य व्यवहार और वार्तालाप तो अवश्य करना चाहिये पर मन में उनको बिना परखे मित्र नहीं मानना चाहिए।
—————————

कवि,लेखक,संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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सुरक्षा व्यवस्था-लघु हास्य व्यंग्य कथा (surksha vyavastha-lagh hasya vyangya katha)


वह अपने भाषण में गरज़ रहे थे-‘आज हमारे शहर की कानून व्यवस्था की स्थिति बहुत खराब है। कोई भी सुरक्षित नहीं है। माता बहिनों को घर से निकलते हुए डर लगता है। कोई आदमी अधिक पैसा जेब में रखकर डरता सड़क पर चलता है। अरे, पर कई लोग तो इसलिये पैसे जेब में रखकर निकलते हैं कि कोई लुटेरा लूटने के लिये हथियार लेकर रास्ते में खड़ा हो और न देने पर निराशा में कहीं हमला न कर बैठै। हा……..हा….’’
एक श्रोता बोल पड़ा-‘आप क्यों कानून व्यवस्था की फिकर करते हैं। आपके साथ तो चार बंदूकधारी पहरेदार है न! कोई खतरा नहीं है फिर कानून व्यवस्था की स्थिति खराब कैसे हैं?’
इससे पहले कि वह कुछ कहते उनके चेले चपाटों ने मंच से उतरकर उस श्रोता पर अपने हाथ साफ कर दिये। वहां खड़े अन्य श्रोताओं ने उसको अधिक पिटने से बचाया।
तब वह बोले-‘अरे भाई, देख लिया न कितनी कानून व्यवस्था की स्थिति खराब है! यह देखो बंदूकधारी पहरेदार खड़े देखते रहे और तुम पिटते रहे। वैसे मेरे चेलों के लिये यह शर्म की बात है।’
फिर वह अपने चेलों ने बोले-‘हट जाओ, ऐसे किसी पर हमला नहीं करना चाहिये। तुम्हें अपनी दमदार आदमी की छबि बनानी है ताकि लोग डरें तो भाई मुझे भले आदमी की छबि बनानी है। एक बात याद रखना हमारी छबि खराब हुई तो तुम्हारी भी बनने वाली नहीं है।’
फिर वह उस श्रोता से बोले-‘हमारा उद्देश्य हम जैसे बड़े लोगों से नहीं तुम जैसे आम आदमी की सुरक्षा और अन्य परेशानियों से है। तुम इतना नहीं समझते! आइंदा ध्यान रखना वरना ऐसे हादसे होते रहेंगे। बड़े लोग भले हों पर उनके चेले चपाटे भी वैसे हों यह जरूरी नहीं है, और कानून व्यवस्था के खराब होने का मतलब तो तुम समझ ही गये होगे।’
वह श्रोता दुःखी मन से वहां से चला गया और भाषण जारी रहा।

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महंगाई में सस्ती दोस्त की वफा-हास्य कविता


आशिक ने अपने दोस्त से कहा
‘‘यार, महंगाई बढ़ गयी है,
माशुका की मांगें पूरी करते करते
जेब कंगाली की सीढ़िया चढ़ रही है,
अब पेट्रोल होता जा रहा है महंगा,
होटलों में बैरे पेश करते हैं महंगे बिल
तब हो जाता है उनसे पंगा,
यह महंगाई तो मोहब्बत को मार डालेगी,
इस संसार में केवल नफरत को ही पालेगी
मुझे अपनी चिंता नहीं
माशुका का ख्याल आता है,
कैसे करेगी मेरे बिना गुजर
यह सोचकर दिल भर आता है।’’

दोस्त ने कहा
‘‘कैसी बात करते हो यार,
अपनी दोस्ती है, न कि व्यापार,
महंगाई में मोहब्बत महंगी हो सकती है
पर दोस्ती कभी नहीं थकती है,
तुम्हारा दर्द सुनकर मेरा दिल भर आया
इतने दिन तुमने क्यों छिपाया,
घबड़ाओ नहीं अपनी माशुका के घर का पता दो,
‘मैं उससे निभाऊंगा’ तुम जाकर उसे अभी बता दो,
जो तुमने उसे ऐश कराए,
मैं उससे ज्यादा कराऊंगा
ताकि उसे तुम्हारी याद न आए,
अरे, वही दोस्त संसार में नाम पाता है,
जो महंगाई में भी दिल के साथ दोस्ती निभाता है।’’
—————

आधुनिकता के नाम पर -हिंदी व्यंग्य कविताएँ (adhinikta ke nam par-hind vyangya kavitaen)


महंगाई आसमान पर चढ़ गयी है,
इसलिये नैतिकता तस्वीर में जड़ गयी है।
चीजों की तरह इंसान भी बिकने लगा है,
मांग आपूर्ति के नियम से अनुसार
जरूरत से ज्यादा है बाज़ार में
इसलिये मेहनत की कीमत पड़ रही है।
———
आधुनिकता के नाम पर
इंसान सस्ता हो रहा है,
मस्ती के नाम पर अनैतिकता की
गुलामी को ढो रहा है।
यौवन की आज़ादी के नाम पर
पेट में पाप के बीज़ बो रहा है।
———-

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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जनवाद को ब्रह्मज्ञान-हिन्दी व्यंग्य (janvad ko brahmagyan-hindi vyangya)


जांच अधिकारी के ब्रह्मज्ञान से दुःखी जनवादी प्रेमी अपनी मृतक प्रेमिका की हत्या के मुकदमे में अपना दर्दभरा बयान करते हुए उसकी शिकायत करेगा-ऐसा कहीं पढ़ने को मिला। यह जनवादी प्रेमी पत्रकार है और अपनी पत्रकार प्रेमिका के माता पिता पर अपने सम्मान के लिये उसकी हत्या का आरोप लगा रहा है। इस जनवादी प्रेमी ने ही आर्यसमाज के एक मंदिर में अपनी उस स्वर्गीय प्रेमिका के साथ विवाह करने की तैयारी की थी, फिर प्रेमिका को अपने ही परिवार वालों की रजामंदी के लिये भेज दिया।

मामला यहीं से शुरु हुआ। यहीं से हम भी अपना विचार शुरु करते हैं। जनवादी दिखना एक शौक है पर यह कोई मुफ्त में नहीं पालता। इस तरह के शौक केवल भारतीय अध्यात्मवादी ही पाल सकते हैं कि बिना कुछ लिये दिये समाज निर्माण के लिये प्रयास करें। यह जनवादी कहीं न कहीं से प्रायोजित होने पर जोश के साथ सक्रिय होते हैं। कहीं कोई राजनीति, सामाजिक या गैर हिन्दू धार्मिक संगठन अपने आर्थिक स्त्रोत इनको उपलब्ध कराता है तो कहीं कोई विदेशी मानवाधिकार संगठन की इन पर कृपा होती है।

आमतौर से जनवाद और प्रगतिशील अलग अलग विचारधारायें मानी जाती हैं पर दोनों का मुख भारतीय दर्शन की दशा और दिशा के सामने विरोध में खुला रहता है। इनके बुद्धिजीवियों का देश पर इतना गहरा प्रभाव शैक्षणिक तथा सामाजिक संगठनों में रहा है कि परंपरावादी बुद्धिजीवी भले ही अलग सोचते हैं पर उनकी शैली भी इनकी तरह हो गयी है। जनवादी या प्रगतिशील समाज को एक शासित होने वाली इकाई मानते हैं और उनका प्रयास यही है कि जन कल्याण के सारे काम केवल राज्य डंडे के जोर पर करे। जबकि परंपरा के अनुसार राज्य और समाज एक पृथक इकाई है और दोनों के शिखर पुरुष अपने ढंग से काम करें यही श्रेयस्कर है। राज्य का जितना कम हस्तक्षेप समाज में होगा उतना ही वह विकसित हो सकेगा। मगर स्थिति यह है कि इन जनवादियों और प्रगतिशीलों ने परिवारों तक में कानून का हस्तक्षेप करा दिया है। हत्या एक जुर्म है पर कहीं दहेज हत्या को अलग कर नया कानून बनवा दिया। आतंकवाद की हत्या को अलग परिभाषित कर अलग से कानून बना। औरत और मर्द के जिंदगी के अलग अलग रूप दिखाये जाते हैं। मतलब जीने और मरने में की स्थितियों में भेद पैदा किया और बात करते हैं जबकि दावा यह कि समतावाद ला रहे हैं।

एक मजे की बात है कि समाज को आधार प्रदान करने वाले सक्रिय, कमाऊ तथा प्रतिभावान पुरुष इन जनवादियों और प्रगतिशीलों की दृष्टि से जारशाही का प्रतीक है जो केवल अपनी स्त्री तथा बच्चों पर अन्याय करता है। जनवादी और प्रगतिशील विचारकों के इस समूह को कथित विकासवादी भी मान सकते हैं जिनको ब्रह्मज्ञान तो अपना दुश्मन दिखाई देता है।

बहरहाल जनवादी प्रेमी इस समय ऐसे ही विकासवादियों का नायक बना हुआ है। वह शादी रद्द करने के पीछे जो तर्क दे रहा है वह ब्रह्मज्ञानियों को हज़म नहीं हो सकता। उसकी स्वर्गीय प्रेमिका ने माता पिता के इच्छा के बिना विवाह की तारीख तय की और फिर चली गयी। जनवादी प्रेमी चाहे कितना भी कहे कहीं न कहीं उसके प्रति दहेज की भारी रकम पाने का मोह जरूर उसमें रहा होगा। जहां तक जनवादी बुद्धिजीवियों का प्रश्न है वह बिना प्रायोजन के न तो किसी अभियान पर लिखते हैं न बोलते हैं ऐसे में वह प्रेमी बिना प्रायोजन के विवाह करता है इसमें संदेह है। विकासवादी तो प्रायोजित होकर काम करते हैं इसलिये यह संभव नहीं है कि कथित पत्रकार प्रेमी अपने अंदर के किसी कोने में दहेज का मोह न पालता हो। दूसरी बात यह है कि दिल्ली में उसकी स्थिति इतनी सुदृढ़ नहीं हो सकती थी जहां वह सभ्रांत परिवार का रूप प्रदर्शित कर सकता-संभव है शादी और बच्चे होने के बाद नमक रोटी के चक्कर में जनवाद का भूत साथ छोड़ देता।

विकासवादी बुद्धिजीवी युवक युवतियां ढाबों या होटलों पर जाकर काफी या चाय पीते हुए फोटो जरूर खिंचवाते हैं और उसके लिये पांच सौ से हजार तक की रकम उनके पास उपलब्ध भी हो जाती होगी पर घर गृहस्थी एक विशाल अंतहीन अभियान है जिसमें ढेर सारे रुपये चाहिये। फ्रिज, गाड़ी कूलर या ऐसी, टीवी तथा अन्य सामान न हो तो गृहस्थी किसी मज़दूर जैसी लगती है-यह अलग बात है कि महल बनाने वाले ईंटों की कच्ची झोंपड़ियों में रहते हुए कुछ मजदूरों के घर में भी आजकल यह सामान दिख ही जाता है-और विकासवादी बुद्धिजीवी कितना भी मज़दूरों, गरीबों तथा बेसहारों के कल्याण के लिये सक्रिय हो पर वह स्वयं वैसा दिख नहीं सकता। उसे तो जींस पहनना है और ढाबे या होटल में खाना है, सबसे बड़ी बात यह कि स्मार्ट दिखना है। इसके लिये चाहिए पैसा! शादी का मामला हो तो दहेज छोड़ने का काम कोई ब्रह्मज्ञानी ही विरला ही कर सकता है प्रायोजन के आदी विकासवादियों से ऐसी अपेक्षा निरर्थक है।

उस जनवादी पत्रकार की स्वर्गीय प्रेमिका की मासूम मां जेल में है और वह भी नारी है पर जनवादियों के सहयोगी नारीवादी बिना इसकी परवाह किये रोज प्रदर्शन किये जा रहे हैं। इनकी चालाकी कोई नहीं समझ पाता। यह अपना घर बचाये रखने और प्रचार पाने के लिये किसी भी बर्बाद घर की आग पर अपनी रोटी सैंक सकते है, कोई मर गया तो फिर तो इनकी पौ बारह है क्योंकि प्रचार माध्यमों में सहानुभूति लहर इनके पक्ष के अनुसार ही बहती है। उसे न्याय दिलवाना है! इन कथित बुद्धिमानों से कौन पूछ कि मरे हुए आदमी के लिये इस संसार में रह ही क्या जाता है जहां वह न्याय जैसी दुर्लभ चीज पाकर सजायेगा? मगर यह ब्रह्मज्ञान की बात है जो इनको विष तुल्य लगेगी।

जांच अधिकारी मृतक युवती के जनवादी मित्रों को ब्रह्मज्ञान दे रहा होगा उसे इसका आभास नहीं है कि सांप काटे हुए आदमी को पानी पिला रहा है जो कि उसके लिये विष तुल्य है। जनवाद ने जिसके दिमाग को काट लिया उसके लिये ब्रह्मज्ञान विष की तरह ही है। जिस तरह माया के शिखर पर बैठे आदमी को सत्य से डर लगता है वैसे ही जनवाद को ब्रह्मज्ञान से भय लगता है।
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कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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सर्वशक्तिमान ने चश्मा उतार दिया-हिन्दी व्यंग्य


सर्वशक्तिमान को यह अहसास होने लगा था कि संसार में उनका नाम स्मरण कम होता जा रहा था। दरअसल अदृश्य सर्वशक्तिमान सारे संसार पर अनूभूति से ही नियंत्रण करते रहे थे और लोगों की आवाज तभी उन तक पहुंचती थी जब उनके हृदय से निकली हो। अपनी अनुभूति के परीक्षण के लिये उन्होंने वायु को बुलाया और उससे पूछा-’यह बताओ, मनुष्यों ने मेरे नाम का स्मरण करना क्या बंद कर दिया है या तुमने ही उनको मेरे पास तक लाने का काम छोड़ दिया है। क्योंकि मुझे लग रहा है कि मेरा नाम जपने वाले भक्त कम हो रहे हैं। उनके स्वरों की अनुभूति अब क्षीण होती जा रही है।
वायु ने कहा-‘मेरा काम अनवरत चल रहा है। बाकी क्या मामला है यह आप जाने।’
सर्वशक्तिमान ने सूर्य को बुलाया। उसका भी यही जवाब है। उसके बाद सर्वशक्तिमान ने प्रथ्वी, चंद्रमा, जलदेवता और आकाश को बुलाया। सभी ने यही जवाब दिया। अब तो सर्वशक्तिमान हैरान रह गये। तभी अपनी अनूभूति की शक्ति से उनको लगा कि कोई एक आत्मा उनके पास बैठकर ऊंघ रहा है-उसके ऊंघने से तरीके से पता लगा कि वह अभी अभी मनुष्य देह त्याग कर आया है। उन्हें हैरानी हुई तब वह नाराज होकर उससे बोले-‘अरे, तूने कौनसा ऐसा योग कर लिया है कि मेरे दरबार तक पहुंच गया है। जहां तक मेरी अनुभूतियों की जानकारी है वहां ऐसा कोई मनुष्य हजारों साल से नहीं हुआ जिसने कोई योग वगैरह किया हो और मेरे तक इस तरह चला आये।
उस ऊंघते हुए आत्मा ने कहा-‘मुझे मालुम नहीं है कि यहां तक कैसे आया? वैसे भी आप तक आना ही कौन चाहता है। मैं भी माया के चक्कर में था पर वह भाग्य में आपने नहीं लिखी थी-ऐसा मुझे उस शैतान ने बताया जिसने अपनी मजदूरी का दाम बढ़ाने की बात पर ठेकेदार से झगड़ा करवा कर मुझे मरवा डाला। वही यहां तक छोड़ गया है।’
अपने प्रतिद्वंद्वी का नाम सुनकर परमात्मा चकित रह गये। फिर गुस्सा होकर बोले-‘निकल यहां से! शैतान की इतनी हिम्मत कि अब मुझ तक लोगों को पहुंचाने लगा है। वह भी ऐसे आदमी को जिसने मेरा नाम कभी लिया नहीं।’
उस आत्मा ने कहा-लिया था न! मरते समय लिया था दरअसल मुंह से निकल गया था। यह उस शैतान की कारिस्तानी या मेरा दुर्भाग्य कह सकते हैं। शैतान ने मुझे पकड़ा और बताया सर्वशक्तिमान कहना है कि जो मेरा नाम आखिर में लेता है वह मुझे प्राप्त होता है। चल तुझे वहां छोड़ आता हूं। कहने लगा कि स्वर्ग है यहां पर! मुझे तो कुछ भी नज़र नहीं आ रहा। न यहां टीवी है और न ही फ्रिज है और न ही यहां कोई कार वगैरह चलती दिख रही है। सबसे बड़ी बात यह कि वह शैतान कितना सुंदर था और एक आप हो कि दिख ही नहीं रहे।’
शैतान होने के सुंदर होने की बात सुनकर सर्वशक्तिमान के कान फड़कने लगे वह बुदबुदाये-‘यह शैतान सुंदर कब से हो गया।’
उन्होंने तत्काल अपना चमत्कारी चश्मा पहना जिससे उनको अपनी पूर्ण देह प्राप्त हुई। वह आत्मा खुश हो गया और बोला-‘अरे, आओ शैतान महाराज! यह कहां नरक में छोड़ गये।’
सर्वशक्तिमान नाराज होकर बोले-‘कमबख्त! मैं तुझे शैतान नज़र आ रहा हूं। वह तो काला कलूटा है। मैं तो स्वयं सर्वशक्तिमान हूं।’
वह आत्मा बोला-‘क्या बात करते हो? अभी अभी तो मुझे वहां से ले आये।’
सर्वशक्तिमान के समझ में आ गया। उन्होंने आत्मा को वहां से धक्का दिया तो वह आत्माबोला-‘आप ऐसा क्यों कर रहे हो।’
सर्वशक्तिमान ने कहा-‘तूने धरती से विदा होते समय मेरा नाम लिया तो यहां आ गया और अब शैतान का नाम लिया तो वहीं जा।’
वह आत्मा खुश होकर वहां से जमीन पर चला आया। इधर सर्वशक्तिमान ने हुंकार भरी और शैतान को ललकारा। वह भी प्रकट हो गया और बोला-‘क्या बात है? मैं नीचे बिजी था और तुमने मुझे यहां बुला लिया।’
उसका नया स्वरूप देखकर सर्वशक्तिमान चकित रहे गये और उससे बोले-कमबख्त! तेरी इतनी हिम्मत तू मेरा रूप धारण कर घूम रहा है।’
शैतान हंसा और बोला-हमेशा ही बिना भौतिक रूप के यहां वहां पड़े रहते हो। न तो सुगंध ग्रहण करते हो न किसी चीज का स्पर्श करते हो। न सुनते हो न कुछ कहते हो। केवल अनुभूतियों के सहारे कब तक मुझसे लड़ोगे। अरे, मुझे यह रूप धारण किये सदियां बीत गयी। तुम्हें होश अब आ रहा है। एक आत्मा पहुंचाया था उसे भी यहां से निकाल दिया।’
सर्वशक्मिान ने कहा-‘पर यह तुमने मेरे रूप को धारण कैसे और क्यों किया? मैंने तुम्हें कभी इतना सक्षम नहीं बनाया।’
शैतान ने कहा-‘क्यों अक्ल तो है न मेरे पास! तुम्हारे ज्ञान को मैंने ग्रहण कर लिया जिसमें तुमने बताया कि जिसका नाम लोगे वैसे ही हो जाओगे। मैं तुम्हारा नाम लेता रहा। उसका मतलब तुम्हारी भक्ति करना नहीं बल्कि तुम्हारे जैसा रूप प्राप्त करना था। सो मिल गया। तुम तो यही पड़े रहते हो और तुम्हारी पत्थर की मूर्तियां और पूजागृह नीचे बहुत खड़े हैं। सभी में मेरा प्रवेश होता है। दूसरा यह कि मैं क्रिकेट, फिल्म तथा तुम्हारे सत्संगों में सुंदर रूप लेकर उपस्थित रहता हूं। अपना रूप बदला है नीयत नहीं। लोग मेरा चेहरा देखकर इतना अभिभूत होते है कि मुझे ही सर्वशक्तिमान मान बैठते हैं। मेरे अनेक सुंदर चेहरों की तो फोटो भी बन जाती है। फिर तुम जानते हो कि माया नाम की सुंदरी जिसे तुमने कभी स्वीकार नहीं किया मेरी सेवा में रहती है। तुम्हें यह सुनकर दुःख तो होगा कि काम मैं करवाता हूं बदनामी में नाम तुम्हारा ही जुड़ता है। जो लोग तुम्हें नहीं मानते वह तो नाम भी नहीं लेते पर जो लेते हैं वह भी यही कहते हैं कि ‘देखो, सर्वशक्तिमान के नाम पर क्या क्या पाप हो रहा है।’
शैतान बोलता गया और सर्वशक्तिमान चुप रहे। आखिर शैतान बोला’-‘सुन लिया सच! अब में जाऊं। मेरे भक्त इंतजार कर रहे होंगे।’
सर्वशक्तिमान ने हैरानी से पूछा-‘तुम्हारे भक्त भी हैं संसार में!
शैतान सीना फुला कर बोला-‘न! सब तुम्हारे हैं! मैं तो उन्हें दिखता हूं और तुम्हारे नाम से वह मुझे पूजते हैं। तो मेरे ही भक्त हुए न!’
शैतान चला गया और सर्वशक्तिमान ने अपना चमत्कारी चश्मा उतार दिया।

कवि, लेखक एंव संपादक-दीपक भारतदीप,Gwalior
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